माता पृथ्वी पुत्रोअहम पृथिव्याः -जी हाँ इस वैदिक मन्त्र उद्घोषकों के वंशजों ने अपनी माँ को पहचानने में ज़रा भी न तो देर की और न ही भूल -सभी ...
माता पृथ्वी पुत्रोअहम पृथिव्याः -जी हाँ इस वैदिक मन्त्र उद्घोषकों के वंशजों ने अपनी माँ को पहचानने में ज़रा भी न तो देर की और न ही भूल -सभी को बधाई !
शुरुआत राज भाटिया जी ने 'अजी हमारी धरती मां है' कह कर की ....फिर तो शुरू हो गया माँ के प्रति नमन का सिलसिला .मगर डॉ दिनेश राय जी का यह उत्तर तो स्वयम एक पहेली से कम नहीं -"जिस उपग्रह पर कैमरा है, वहाँ से यह ग्रह हमेशा उसी स्थान पर नजर आता है जहाँ यह अभी है। केवल पृथवी पर पूनम के दिन और उस के बाद के दिन के अलावा। इसे उस उपग्रह के लिए बड़ा ध्रुवतारा भी कह सकते हैं।"
पारुल जी ने चाँद से पृथ्वी को निरखा तो महेंद्र मिश्रा जी ने झट से इसकी पुष्टि की! ताऊ ने इसपर अपनी लठ से ही मुहर लगा दी और हक़ से कहा कि यह सौ फीसदी अपनी धरती ही हैं क्योंकि यह नीली है -नीला ग्रह अपनी धरती ही है .ज्ञानदत्त जी ( अब एक और ज्ञान हुए हैं ,अब केवल ज्ञान जी से काम नही चलने वाला ) ने भी अपनी कृपालु उपस्थिति दर्ज की और एक शब्द कहा -धरती ,अभिषेक ओझा जी ने कहा -अर्थ और यह कहकर कोई अनर्थ नही किया ! सुनील मंथन शर्मा ने सोचा कि अब मैं क्या घिसा पिटा जवाब दूँ और खीझ पहेली कर्ता पर यह स्नेहिल टिप्पणी करके उतारी कि "आप फेल हो गए अरविन्द जी " भला कैसे और क्योंकर पहेली कार फेल हुआ सुनील जी ? अभी आगे तो देखियेऔर पढिये यह अगली ही टिप्पणी डॉ अमर कुमार जी की जिसमें इस पहेली का सटीक और सारगर्भित उत्तर है -श्रीमान जी, चित्र में दिखलाया गया ग्रह प्लेनेट अर्थ के नाम से जाना जाता है, नील आर्मस्ट्रांग द्वारा लिया यह पहला चित्र है, जो अंतरिक्ष से लेना संभव हुआ । !
अब चूंकि समीर जी के लिए डॉ अमर कुमार जी ने कुछ छोडा ही नही था इसलिए उन्होंने महज अपना टिप्पणी धर्म निभाया और चलते बने ( समीर जी , सरे आम पूँछ रहा हूँ -कब बनारस आ रहे हैं ?लगातार आप इस प्रश्न का उत्तर मठेसते जा रहे हैं !)
लो उन्मुक्त जी की विशेषग्य टिप्पणी भी आ गयी - "पृथ्वी ".जीशान जी का मन चुहलबाजी में ज्यादा लगता है तो इस बार भी अपनी फितरत से बाज नही आए -यार कभी तो सीरियसली जवाब दिया करो हर बार वही हास परिहास ! अब तुम्हारी तो ......शिकायत इस ब्लॉग के ओनर से करनी होगी जो कहते हैं कि तुम्हारा जिगरी है और तुमने उनसे भडंगयी का बाकायदा लाईसेंस ले रखा है -सच क्या है ज़ाकिर ?और रंजू जी भी जीशान की हामीभर रही है -न जाने क्या गुल खिल रहा है नेट/(मडुए ) के नीचे ! अपुन तो आगे बढ़ता है !
आख़िर अपने ज़ाकिर भाई भी कौनो कम तो नही सो इस बार विद्वता में डॉ अमर कुमार (सावधान !)का कान काटते भये हैं -
"फोटो में सामने की ओर नीलिमा लिये हुए जो पिण्ड दिख रहा है, वह पृथ्वी ही है और उसमें जो नीलिमा है धरती पर मौजूद पानी की वजह से है। और सौ फीसदी यह फोटो चांद से लिया गया है।"
अब इस जवाब पर भला कौन नही मर मिटेगा ! धरोहर का भी सही जवाब रहा .मीत भाई जीशान जी के झांसे में आकर सशंकित से हो एक नही दो जवाब दे डाले -एक सही तो दूसरा ग़लत -"दो ग्रह हैं: नीला वाला पृथ्वी और दूसरा चाँद..."अब सुनील मंथन शर्मा जी कृपा कर ये बताएं कि पहेलीकार क्या सचमुच फेल हुआ है ? क्या चित्र में दो ग्रह हैं ?क्या चन्द्रमा ग्रह है ?
पिंटू ,ज़ाकिर हुसेन जी के भी सही जवाब आए !
शास्त्री जी ने कुछ रही सही कसर भी पूरी कर दी और यह जानकारी भरी टिप्पणी देकर इस पहेली अनुष्ठान का शानदार समापन किया -"आसमान में टंगा पिंड हमारी प्यारी पृथ्वी है. चित्र चंद्रमा की परिक्रमा करते किसी एक यान से लिया गया है.इस तरह का पहला चित्र अपोलो चंद्रयान से लिया गया था. सोवियत संघ के यानों ने भी ऐसे चित्र लिये होंगे, लेकिन चित्रों को सबसे पहले प्रकाशित एवं जनप्रिय अमरीकियों ने किया था."
इस जवाब के लिए फिरदौस जी के पास बस एक ही शब्द था -
बेहद दिलचस्प !
और छपते छपते .....
योगेन्द्र मौदगिल जी की टिप्पणी आई है ,आई है -
धरा !
शुरुआत राज भाटिया जी ने 'अजी हमारी धरती मां है' कह कर की ....फिर तो शुरू हो गया माँ के प्रति नमन का सिलसिला .मगर डॉ दिनेश राय जी का यह उत्तर तो स्वयम एक पहेली से कम नहीं -"जिस उपग्रह पर कैमरा है, वहाँ से यह ग्रह हमेशा उसी स्थान पर नजर आता है जहाँ यह अभी है। केवल पृथवी पर पूनम के दिन और उस के बाद के दिन के अलावा। इसे उस उपग्रह के लिए बड़ा ध्रुवतारा भी कह सकते हैं।"
पारुल जी ने चाँद से पृथ्वी को निरखा तो महेंद्र मिश्रा जी ने झट से इसकी पुष्टि की! ताऊ ने इसपर अपनी लठ से ही मुहर लगा दी और हक़ से कहा कि यह सौ फीसदी अपनी धरती ही हैं क्योंकि यह नीली है -नीला ग्रह अपनी धरती ही है .ज्ञानदत्त जी ( अब एक और ज्ञान हुए हैं ,अब केवल ज्ञान जी से काम नही चलने वाला ) ने भी अपनी कृपालु उपस्थिति दर्ज की और एक शब्द कहा -धरती ,अभिषेक ओझा जी ने कहा -अर्थ और यह कहकर कोई अनर्थ नही किया ! सुनील मंथन शर्मा ने सोचा कि अब मैं क्या घिसा पिटा जवाब दूँ और खीझ पहेली कर्ता पर यह स्नेहिल टिप्पणी करके उतारी कि "आप फेल हो गए अरविन्द जी " भला कैसे और क्योंकर पहेली कार फेल हुआ सुनील जी ? अभी आगे तो देखियेऔर पढिये यह अगली ही टिप्पणी डॉ अमर कुमार जी की जिसमें इस पहेली का सटीक और सारगर्भित उत्तर है -श्रीमान जी, चित्र में दिखलाया गया ग्रह प्लेनेट अर्थ के नाम से जाना जाता है, नील आर्मस्ट्रांग द्वारा लिया यह पहला चित्र है, जो अंतरिक्ष से लेना संभव हुआ । !
अब चूंकि समीर जी के लिए डॉ अमर कुमार जी ने कुछ छोडा ही नही था इसलिए उन्होंने महज अपना टिप्पणी धर्म निभाया और चलते बने ( समीर जी , सरे आम पूँछ रहा हूँ -कब बनारस आ रहे हैं ?लगातार आप इस प्रश्न का उत्तर मठेसते जा रहे हैं !)
लो उन्मुक्त जी की विशेषग्य टिप्पणी भी आ गयी - "पृथ्वी ".जीशान जी का मन चुहलबाजी में ज्यादा लगता है तो इस बार भी अपनी फितरत से बाज नही आए -यार कभी तो सीरियसली जवाब दिया करो हर बार वही हास परिहास ! अब तुम्हारी तो ......शिकायत इस ब्लॉग के ओनर से करनी होगी जो कहते हैं कि तुम्हारा जिगरी है और तुमने उनसे भडंगयी का बाकायदा लाईसेंस ले रखा है -सच क्या है ज़ाकिर ?और रंजू जी भी जीशान की हामीभर रही है -न जाने क्या गुल खिल रहा है नेट/(मडुए ) के नीचे ! अपुन तो आगे बढ़ता है !
आख़िर अपने ज़ाकिर भाई भी कौनो कम तो नही सो इस बार विद्वता में डॉ अमर कुमार (सावधान !)का कान काटते भये हैं -
"फोटो में सामने की ओर नीलिमा लिये हुए जो पिण्ड दिख रहा है, वह पृथ्वी ही है और उसमें जो नीलिमा है धरती पर मौजूद पानी की वजह से है। और सौ फीसदी यह फोटो चांद से लिया गया है।"
अब इस जवाब पर भला कौन नही मर मिटेगा ! धरोहर का भी सही जवाब रहा .मीत भाई जीशान जी के झांसे में आकर सशंकित से हो एक नही दो जवाब दे डाले -एक सही तो दूसरा ग़लत -"दो ग्रह हैं: नीला वाला पृथ्वी और दूसरा चाँद..."अब सुनील मंथन शर्मा जी कृपा कर ये बताएं कि पहेलीकार क्या सचमुच फेल हुआ है ? क्या चित्र में दो ग्रह हैं ?क्या चन्द्रमा ग्रह है ?
पिंटू ,ज़ाकिर हुसेन जी के भी सही जवाब आए !
शास्त्री जी ने कुछ रही सही कसर भी पूरी कर दी और यह जानकारी भरी टिप्पणी देकर इस पहेली अनुष्ठान का शानदार समापन किया -"आसमान में टंगा पिंड हमारी प्यारी पृथ्वी है. चित्र चंद्रमा की परिक्रमा करते किसी एक यान से लिया गया है.इस तरह का पहला चित्र अपोलो चंद्रयान से लिया गया था. सोवियत संघ के यानों ने भी ऐसे चित्र लिये होंगे, लेकिन चित्रों को सबसे पहले प्रकाशित एवं जनप्रिय अमरीकियों ने किया था."
इस जवाब के लिए फिरदौस जी के पास बस एक ही शब्द था -
बेहद दिलचस्प !
और छपते छपते .....
योगेन्द्र मौदगिल जी की टिप्पणी आई है ,आई है -
धरा !
अरविन्द जी
जवाब देंहटाएंपहले मन था कि उत्तर में मां लिखू
पर
फोन पर एक मित्र से बात चल रही थी कि धरा टाइप हो गया
खैर
जाकिर भाई के लिये भी एक संदेश
मित्रवर,
नमस्कार.
मेरे ब्लाग 'हास्य कवि दरबार' पर आपकी टिप्पणी पढ़ कर आपकी सदाशयता से अभिभूत हूं.
परन्तु आपकी जानकारी के लिये निवेदन है कि
यों तो मेरे पांच ब्लाग है लेकिन मैं केवल तीन ब्लाग्स को ही निरन्तर अपडेट कर पा रहा हूं.
इसलिये यदि आप मेरे निम्न ब्लाग्स पर भ्रमण करेंगें तो मेरी जानकारी में रहेंगें और संवाद बना रहेगा
योगेन्द्र मौदगिल डाट ब्लागस्पाट डाट काम
yogindermoudgil.blogspot.com
हरियाणा एक्सप्रैस डाट ब्लागस्पाट डाट काम
haryanaexpress.blogspot.com
कलमदंश पत्रिका डाट ब्लागस्पाट डाट काम
kalamdanshpatrika.blogspot.com
निम्न दोनो ब्लाग्स अभी अपडेट नहीं कर पा रहा हूं
हास्यकविदरबार डाट ब्लागस्पाट डाट काम
hasyakavidarbar.blogspot.com
यारचकल्लस डाट ब्लागस्पाट डाट काम
yaarchakallas.blogspot.com
शेष शुभ
आशा है आप उपरोक्त तीनों ब्लाग्स ही पढ़ेंगें
साभार
-योगेन्द्र मौदगिल
सर जी बहुत आकर्षक रही ये पहेली ! और टिपणी पर लिखी आपकी पोस्ट तो और भी मजेदार ! पहेलीकार को फेल बताने से कहीं ये तात्पर्य तो नही था की आप लोगो को भरमा नही पाये ! और सारे ही पार्टिसिपेंट सही जवाब दिए जा रहे थे ! खैर जो भी हो ! अपने दिमाग में तो यही आया ! बहुत शुभकामनाएं !
जवाब देंहटाएंजमाये रहिये। अभी तो बहुत से ग्रह-नक्षत्र बाकी हैं।
जवाब देंहटाएंअबकी क्या पहेली आयेगी, यह जिज्ञासा निरंतर आपकी वजह से बनी रहती है. कभी कभी लवली भी बीन बजाती हैं मगर आजकल चुप सी हैं. :)
जवाब देंहटाएंबनारस का जल्द प्रोग्राम बनेगा. भारत पहुँच कर आपसे फोन पर बात करता हूँ.
अरे भाई लबली का खुब याद दिलाया, कही बाढ मै तो नही बह गई, भाई उस का भी पता करो, बिन लबली सब सून, अर्विन्द जी धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशुक्रिया इस बार बच गया खैर कृपया दादा राज जी और समीर जी की टीप पर बारीकी से ध्यान दे ...और तलाश शुरू करे.
जवाब देंहटाएं@ राज भाटिय़ा ..
जवाब देंहटाएंUdan Tashtari ...
हाँ मुझे भी लवली की याद आयी थी वे अपनी अनुपस्थिति से ही विशिष्ट बन गयी हैं ! साईब्लाग तो उन्होंने छोड़ ही दिया है और ना करें ज़ाकिर भाई का तस्लीम भी रेगिस्तान न कर दे वें !
जहाँ हों सही सलामत हों !
अगली पहेली का इंतजार है ।
जवाब देंहटाएंअरविंद जी, लगता है जीशान भाई जितने बाहर से दिखने पर सीधे हैं, उतने हैं नहीं, तभी वे अपनी टिप्पणी में कोई न कोई सुर्रा छोड ही देते हैं। वैसे भी यह उनका विशेषाधिकार है कि वे कैसी टिप्पणी करें। मेरी समझ से जिस प्रकार हास्य विज्ञान कथा का श्रेय उन्हें जाता है, उसी प्रकार परिहासपूर्ण टिप्पणी का सेहरा भी उनके सिर ही बंधना चाहिए।
जवाब देंहटाएंoh is baar hume to ptaa he nahee chla kub phele aae or chlee bhee gyee....next phele ka intjar hai ab too. congratulation to all winners..
जवाब देंहटाएंRegards
लोगों ने हमारी खिंचाई की ठान ली है ...हम इस बार आ नही पाए...क्या करें वोही पुरानी कहानी ...तबियत नासाज थी ..खैर जल्दी ही सबकी "..."बजाते हैं. इन्तिज़ार तब तलक ...बेकरार तब तलक ..हा हा हा
जवाब देंहटाएंअब बोलिए शैतान का नाम लो और शैतान हाजिर
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