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दुखद है .पर इस सदी के लोग शायद हर सदी में मिलेगे ....
जवाब देंहटाएंचलिए!! फ़िर भी मुबारकबाद जी!!
जवाब देंहटाएंदर-असल हमारी सरकार भी ज्यादातर मुद्दों पर वोट-बैंक के चक्कर में कड़े कदम नहीं उठा पाती है!!
ठीक यही समस्या विद्यालयों में बच्चे को न भेजने के सन्दर्भ में आती है......
यह घटना एक चिंताजनक प्रकरण है। इसपर जन जागरण से ही कोई उपाय निकल सकता है।
जवाब देंहटाएंचिंतनीय किन्तु महत्वपूर्ण विषय।
जवाब देंहटाएंऐसे लोग हर जगह हर देश में मोजूद हैं...आर्थिक रूप से संपन्न देशों में भी ऐसा देखा गया है..जहाँ लड़के की चाहत ने तलाक तक हो गए हैं.हर केस एक individual केस है.
जवाब देंहटाएंजिस व्यक्ति का जिक्र आप ने यहाँ किया है उस व्यक्ति को किसी फॅमिली डॉक्टर से सलाह या क्लीनिकल phychologist
[-phychiatrist नहीं]-से मनो वज्ञानिक परामर्श और psychotherapy लेनी चाहिये.
phychiatrist और psychologist में फर्क होता है.
यह मजाक नहीं में नहीं कह रही हूँ या सिर्फ़ कमेन्ट नहीं कर रही हूँ..एक सीरियस राय दे रही हूँ.एक लड़का होने के बावजूद जिसे इतनी असुरक्षा है वह सामन्य नहीं है.हमारे देश में आज भी लोग मनोचिकत्सा की राय को अन्यथा ले लेते हैं ,जबकि अक्सर कई समस्याएं विकराल रूप धारण न करें इस के लिए जरुरी है समय रहते इस तरह के व्यक्तियों को अपना इलाज करा लेना चाहिये.इस समय वह अगर अपना पत्नी पर कुपित हो रहा है तो यह गुस्सा की भी रूप धारण कर सकता है--या कुंठा उसे अपराधी बना सकती है.
विडंबना यह है कि हमारी सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था में इक्कीसवीं सदी में भी बाहुबल काफी महत्व रखता है। ईमानदारी से काम करनेवाला एक नौकरीपेशा आदमी अपनी पूरी जिंदगी में जितना नहीं कमाता, उससे अधिक एक बाहुबली ठेकेदार या राजनेता एक साल में कमा लेता है। उपर से नीचे तक व्याप्त भ्रष्टाचार इस स्थिति में कोई सुधार नहीं होने देता। ये हालात जनजागरण के प्रयासों को भी नाकाफी कर देते हैं। सबकुछ जानने-समझनेवाले लोग भी इन हालातों में पुत्रकामना ही श्रेयस्कर समझते हैं।
जवाब देंहटाएंयह कौम कभी ख़त्म होगी ? आज भी यह मानसिकता पूरी तरह से हावी है कई लोगो के जहन में तभी तो कोख में कब्र देने का सिलसिला जारी है
जवाब देंहटाएंआश्चर्य की बात है की पत्नी को लड़की पैदा करने का दोष देने वाले हमारे समाज में पढ़े लिखे प्रतिष्ठित लोग भी हैं...दुःख होता है जब आज के युग में भी हम ऐसी मानसिकता वाले लोग देखते हैं...अनुराग जी की बात से सहमत हूँ..
जवाब देंहटाएंनीरज
ऎसे लोगो को पकड कर पाकिस्तान भेज दो.
जवाब देंहटाएंजनाब आप अनपडो की बात करते है, हम ने पढेलिखे लोगो को देखा है हर साल नया मोडल बन कर आ रहा है,इस उम्मीद मै कि कभी तो लडका आयेगा,अब सब पलटन को पाले केसे ? रिश्वत, बेईमानी, आधी लडकियो की शादी की ही नही आधी लडकियो की शादी बेमेल से कर दी, आप्नी जिन्दगी को खराब करते ही है साथ मै पुरे परिवार का जीना भी बेकार, इस लिये इन सब को पाकितान ओर अफ़्गानिस्तान भेज दो, वहा इन जेसे लाखो है, अगर फ़िर भी बच जाये तो बंगला देश
धन्यवाद
समस्या ये हुई कि बेचारे लो स्टेटस वाले थे. वरना हाई स्टेटस और पढ़े लिखे लोगों के पास ज़्यादा अच्छे तरीके हैं जैसे कि भ्रूण हत्या.
जवाब देंहटाएंपढ़े लिखे लोगों से ऐसी अपेक्षा नहीं होती. परन्तु आपने उदहारण दिया है. और ना जाने कितने ऐसे लोग हैं. कैसे अंकुश लगायी जाए. एक ही उपाय दीखता है. बलात्मक नियोजन. क्या इसके पक्ष में हैं? अच्छी पोस्ट. आभार.
जवाब देंहटाएंbahut gmbhir aur chintajnak baat hai.
जवाब देंहटाएंmain apane computer se dur hu. krapaya roman me coment karane ke liye maaf kariyegaa.
raam raam.
population,poverty,education,job infact terror, all r linked 2gadr. change can come through education only.
जवाब देंहटाएंपत्नी तो सलीब है - जिसपर सारी गलती, सारा गुस्सा टांगा जाता है इस देश में।
जवाब देंहटाएंऐसे लोगों का कुछ किया भी नहीं जा सकता. बात बड़ी-बड़ी करते हैं और काम वही !
जवाब देंहटाएंखेदजनक।
जवाब देंहटाएंइसीलिए तो हम पिछड़े कहलाते हैं। ...लानत है उनपर जो बेटे के लिए घर में बच्चों की लाइन लगवाते हैं।
जवाब देंहटाएंमेरे यहाँ भी एक ऐसे चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे, जिन्होंने तीन लड़कियों के बाद एक लड़का पैदा होने के बावजूद भी तीन लड़कियाँ और पैदा कीं, जबकि उनके आसपास एक या दो संतानोंवाले प्रवक्ताओं व सहायक अध्यापकों के परिवार हरदम बने रहते थे, जिनमें से कुछ में केवल लड़कियाँ ही थीं। लड़कियों के जन्म के लिए पत्नियों को दोषी ठहरानेवाले पतियों को यह पता चलना बहुत आवश्यक है कि संतान के पुत्र या पुत्री होने के लिए पुरुष ही पूरी तरह से जिम्मेदार होता है। इसके लिए स्त्री किसी भी रूप में जिम्मेदार नहीं होती। वह तो उस पुत्र या पुत्री को जन्म देने के लिए अपने गर्भ में उसका पोषण करती है, जो उसे उसके पति ने दिया होता है। इस मामले में पुरुष हमेशा स्त्री का ऋणी ही रहेगा।
जवाब देंहटाएंसुब्रमण्यम जी से सहमत, बलात्मक नियोजन ही आखिरी रास्ता है… यदि सरकारी कर्मचारी तीसरा बच्चा पैदा करे तो उसकी पेंशन रोक लो, किसान तीसरा बच्चा पैदा करे तो उसके खेत की दो एकड़ जमीन किसी अस्पताल को दान कर दो, व्यापारी तीसरा बच्चा पैदा करे तो उसे लगने वाले सारे टैक्स दोगुने कर दो… ये भदेस लोग तभी सुधरेंगे… "कन्या भोज" की नौटंकी करके लड़के की आस में चार-चार लड़कियाँ पैदा करने वाले धार्मिक पाखण्डियों को पकड़-पकड़ कर नसबन्दी करना जरूरी है…
जवाब देंहटाएंsahi kaha aapne it is realy sad
जवाब देंहटाएंGambhir evm dukhad
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब
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आप भारत का गौरव तिरंगा गणतंत्र दिवस के अवसर पर अपने ब्लॉग पर लगाना अवश्य पसंद करेगे, जाने कैसे?
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
दुनिया में जितनी भी समस्यायें हैं उसके लिए
जवाब देंहटाएंकहीं न कहीं बढ़ती जनसँख्या एक बड़ी वजह है ! आश्चर्य है कि इस विकराल समस्या के ऊपर अभी भी कोई बात नहीं करना चाहता !
साहित्य, सिनेमा और टीवी, जैसे जागरूकता पैदा करने वाले सशक्त माध्यम भी रस्म अदायगी करते नजर आते हैं !
भारत में 1950 के दशक में प्रति महिला बच्चों का औसत छह था, आज भारत में जन्म दर घट के आधी रह गई है, लेकिन देश के सामने सबसे बड़ी चुनौती अब भी भारी जनसंख्या ही है.
भारत की जनसंख्या में हर साल ऑस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर लोग पैदा लेते हैं !
यानी जनसंख्या में स्थिरता लाने का भारत का प्रयास नाकाम रहा है ! चीन जैसे देश ने अपनी आबादी पर काफी हद तक नियंत्रण प् लिया मगर हमारे देश में जनसंख्या नियंत्रण की नीति अब भी सटीक नहीं है और परिवार नियोजन संबंधी बुनियादी उपायों की जानकारी भी सही ढ़ंग से प्रसारित नहीं हो पाई है !
बड़ी संख्या में बंगलादेशी अपनी घुसपैठ किए हुए हैं लेकिन वोट की घटिया राजनीति के कारण आँखें बंद हैं ! विभिन्न धर्मगुरुओं के उपदेशों ने भी आबादी बढ़ाने में अपना योगदान दिया है ! लोगों की मानसिकता में परिवर्तन लाना बेहद आवश्यक है !
सत्य लिखा है ।
जवाब देंहटाएंिऐसी घटनायें शायद हर गली मोहल्ले में है म्रगर कोई कुछ नहीं कर सकता लेकिन वक्त के साथ सब बदलता्रहता है इस्के लिये सामाजिक चेतना की कोईलहर जरूर उठेगीइसी आशा पर तो आज से वर्षों पहले का समाज बदला है तो ये भी बदलेगा
जवाब देंहटाएंChina ke keval ek santan wale model ki aalochna me bahut dalilen di ja sakti hain par shayad Bharat me bhi kuch aisa hi sakht kadam uthane ki jarurat hai.
जवाब देंहटाएंkarnaa kya hai........ye khud karte-karte mar jaayenge......koi sahaanubhuti nahin.....!!
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