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जो बात हमारी समझ में नहीं आयी आपको कैसे समझाएं?
जवाब देंहटाएंकेवल समाचारपत्र की बात करें तो उसमें तमाम बाबाओं के विज्ञापन छपते है. उसमें कॉलगर्ल्स के विज्ञापन छपते है. क्या इसका अर्थ उन्हे नहीं मालूम या उनका भी कोई उत्तरदायित्त्व नहीं है?
कोई एक तीन या दस कैसे कर सकता है? मगर ठगी जारी है. लालच अंधा बना देता है.
sahi kaha apne
हटाएंlalac buri balaa
जवाब देंहटाएं“मैं सच कहता हूँ ऐसे भुक्तभोगियों के साथ मेरी जरा भी सिम्पैथी नहीं होती!” sahi baat hai...
जवाब देंहटाएंaise logo ko protsahan to janta se hi milta hai...wo inke uper vishwas karke khud apne ko bevkuf banane ki ijazat deti hai...
मुझे तो गुस्सा आता है ऎसे पागल लोगो पर जो इन सब के चक्करो मे फ़ंस जाते है , बिन मेहनत किये अपने धन को चार गुना करना चाहते है, रोजाना ऎसे हजारो किस्से होते है, लेकिन दुनिया फ़िर भी नही समझती, असल मे ढोंगी बाबा कम कसुर बार है उस से ज्यादा कसुर बार इस के भगत है, जो दिमाग के होते हुये भी इन के पीछे सिर्फ़ भीड देख कर चल पडते है.
जवाब देंहटाएंइन बाबाओ की पेरो की मिट्टी भी अपने सर पर मलते है, लानत है ऎसी मान्सिकता पर, ओर मुझे ऎसे ठगे हुये लोगो से बिलकुल भी सहानुभुति नही होती, बल्कि इन्हे भी सजा मिलनी चाहिये, अरे अपने मां बाप को छोड कर, उन्हे ध्क्के मार कर घर से बाहर निकालते है ओर इन ढोंगी बाबा को अपनी बेटिया तक पेश करते है.
शिक्षा बढ़ी जरुर है, मगर वह किताबी ही है. व्यक्ति को मानसिक रूप से मजबूत और आत्मविश्वासी बनाया जा सके तभी इस समस्या का हल है.
जवाब देंहटाएंagar insaan Lalch chhod de to in babaon ki duakan bhi band ho jayegi
जवाब देंहटाएंसिर्फ ठग ही क्यों? सबसे पहले तो मनुष्य का अपना लालच ही जिम्मेदार है. क्यों पहुँच जाते हैं अपने नोट दूने करवाने?
जवाब देंहटाएंअंधविश्वास और लालच हिंदुस्तान से दूर हो जाए तो देश की सूरत ही बदल जाए.. आपने बिल्कुल सही मुद्दा उठाया.. आभार
जवाब देंहटाएंदोषी वे ठगे गए सभी लालची लोग है | इन्हें कोई बाबा नहीं ठगता ,इनका लालच इन्हें ठगता है |
जवाब देंहटाएंbengaNi bhaai se sahamat...
जवाब देंहटाएंइतनी जल्दी-जल्दी पोस्ट.
जवाब देंहटाएंसबसे तेज .... सबसे पहले की अदा छोडिये और अपने पोस्ट की अहमियत को पहचानिये.
जब आपकी नजर में ही पोस्ट की अहमियत नहीं है तो पाठकों की नजर में कैसे बनेगी ?
पाठकों को विचार-विमर्श का अवसर दीजिये. जब तक पाठक विचार देने का मन बनाता है तब तक आपकी दूसरी पोस्ट आ जाती है. मेरे हिसाब से यह सही नहीं है.
वाह रजनीश जी ! पहली बार येसा मुद्दा उठाया है कि सारे कमेंट एक ही हैँ |सबने लालची लोगों को जिम्मेदार ठहराया है |देखिये लालच का अंत नही किया जा सकता ,लालच तो शेयर मार्केट में भी है ,लेकिन वहाँ अन्धविश्वास नही है वहाँ उन्हे पता है कि इस में रिस्क है |यहाँ लालच अन्धविश्वास से जुडा है शायद रजनीश जी इस बिन्दु को उभारना चाहते हैँ |अगर छोटे बच्चे को कोइ टाफी ,चाकलेट का लालच देकर बरगलाये और उसे किसी भी प्रकार की छति पहूचाये तो हम ये नही कहेंगे कि बच्चे का लालच जिम्मेदार है | बच्चा तो अबोध है , उसे बोध नही है बस यही मूल है समस्या का | जनता तो अबोध है उसे बोध नही है अन्धविश्वास उसको बोध नही होने देता सिर्फ शिक्षा ही इसका उपाय नही है |शिक्षा और वैज्ञानिक चेतना इसका उपाय है | साथ ही ठगने वाले के लिये कठोर सजा भी जरुरी है
जवाब देंहटाएंसब कुछ समय से पूर्व प्राप्त करनें की लालसा ,जिस योग्यता को आप धारित नहीं कर सकते हैं ,उससे ज्यादा परिस्थितियों का लाभ उठा कर प्राप्त करनें के बाद उसे बचाए रखने की जद्दोजेहद आदि कारणों के चलते हमी लोंगो द्वारा ये बाबा पोषित हो रहे हैं वर्ना जिसे दो जून रोटी की चिंता है उन्हें इन बाबाओं का आर्शीवाद नहीं मिलता .
जवाब देंहटाएंjagat naraayan ko chor kar nagad naraayan ke liye race lagee hai .babaon ki kayaa kahiye management colleges bhee haathon me illegal fine roopee laal mirchee lekar chaatron ke peeche dour rahe hain.
जवाब देंहटाएंभाई लालच बुरी बला. कहीम भी जाओ एक रुपये की दो अठ्ठनी होती है. हम तो अपनी वही संभालकर रखते हैं. जिसको रुपये की तीन अठ्ठनी करनी हो वो जाये इनके पास.
जवाब देंहटाएंरामराम.
यह मामला तो नहीं मालुम, पर हर पॉन्जी स्कीम से सावधान रहना चाहिये। दुनियां में कहीं फ्री-लंच नहीं मिलता!
जवाब देंहटाएंये मुद्दा आपने बहुत बढिया उठाया.....इसके लिए साधुवाद स्वीकार करें।
जवाब देंहटाएंखुद में भरोसे की कमी है फलती फूलती बाबाबाजी का कारण.
जवाब देंहटाएंमेरा तो यहाँ मानना है कि ऐसे प्रकरण में जो भी ठगे जाते हैं उन पर भी मुकद्दमा चलना चाहिये।
जवाब देंहटाएंईन में से कंइ लोग जो डबल पैसे बना चुके उनका क्या। लालची का तो यही अंजाम होना है। सभी को एक सी सज़ा मिलनी चाहीये।
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जवाब देंहटाएंमै जब छोटा था और जब मैने पहले-पहल पाठ्यक्रम मे इतिहास की किताब पढी थी, तो मेरे मासूम दिमाग मे जो पहला सवाल उठा था, वह यह था कि इतने बडे हिन्दुस्तान और इतनी सारी विभिन्नताओ वाले प्रदेशो को कैसे मुठ्ठीभर मुसलमान आक्रमणकारी और चन्द अंग्रेज व्यापारी एक लंबे समय तक गुलामी रूपी एकता के सुत्र मे बाध कर रख सके ! और इसका जबाब मुझे मिला करीब पैन्तीस साल बाद, और अब सोचता हूँ कि सचमुच इस देश के ज्यादातर निवासी ’मूर्ख’ और ’लालची’ किस्म के लोग है, और ये नहीं की सिर्फ अनपढ़ गवार ही उसके झांसे में आये हो, अच्छे खासे बड़े- बड़े डिग्री होल्डर भी है (मूर्ख शब्द इनके लिये अगर छोटा पड जाये तो ’महामूर्ख’ शब्द भी इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन ’भोला’ शब्द प्रयुक्त करना शायद उचित नही होगा) ! जब एक अकेला अशोक जडेजा इतने सारे लोगो को मूर्ख बना सकता है तो उन आक्रमणकारियो और व्यापारियों के पीछे तो बहुत सारे दिमाग काम कर रहे थे! उनके लिए इस लेश को गुलामी की जंजीरों में जकड़ना कौन सा मुश्किल काम था भला? हां, एक बात और, जब इतने सारे ठग इस देश मे पोलिटीशियन और लालफ़ीताशाहो के भेष मे बेधडक खुले विचरण कर रहे है ,तो एक अकेले अशोक जडेजा क्यों? सिर्फ इनके ठगी के स्टाईल में ही तो फर्क है, क्या कभी हमने इमानदारी से यह जानना चाहा कि जो भूखे-नंगे लोग, चन्द सालो पहले इस देश की राजनीति मे आये, अथवा नौकरशाही के उच्च पदो पर आसीन हुए थे, वे इतने कम समय मे, आज अचानक अरबों, करोडो की सम्पति के मालिक कैसे और कहां से बन गये ?
जवाब देंहटाएंप्रकाश गोविन्द जी को नमस्कार ! यदि कुछ असत्य लिख दिया हो तो उसके लिए छ्मा चाह्ता हूँ
जवाब देंहटाएंआपका भय साफ झलक रहा है "हमारी कमजोरी है - "हमारे संस्कार ... हमारा माहौल और पूर्णतयः बाजार से संचालित मीडिया" !!"
नमस्कार बन्धु
जवाब देंहटाएंशुक्रिया मेरी प्रतिक्रिया पढने के लिए !
यह मानवीय स्वभाव है कि वह अपनी चिर-परिचित चीज सबसे पहले देख लेता है !
मुझे दुःख है कि आपको और कुछ झलक नहीं दिखी !
रजनीश जी ,
जवाब देंहटाएंआप अंधविश्वास के खिलाफ लिख रहे हैं पढ़ कर अच्छा लगा ....अंधविश्वास किस कदर हमारे बसे बसाये घर को तहस नहस कर देता है मैंने प्रत्यक्ष देखा है ....!!
आहा
जवाब देंहटाएंवही मैंने सोचा कि आखिर गोविन्द जी चुप क्यों हो गए ?
मुझे क्या पता था कि ये तूफान से पहले की शान्ति है.
सत्येन्द्र भाई से कहना चाहूंगा कि आप गोविन्द जी की चिंता छोड़ दें. उन्होंने तो भय पर मुक्ति पा ली है. उन्होंने हमेशा ही हर जगह, हर किसी के सामने, बिना किसी से डरे गलत बातों का विरोध किया है.और यह बात मैं ही नहीं इनको जानने वाले सब लोग जानते हैं.
गोविन्द भाई आपके लिखे को बहुत ध्यान से पढ़ा. बस मेरे समझ में एक बात नहीं आती कि सरकार इनके ऊपर नकेल क्यों नहीं कसती ? मीडिया में इनका हाई लाईट होना समझ में आता है क्योंकि वहां बाजार है , पैसा है, लेकिन सरकार की क्या मजबूरी है ? सरकार में बैठे सभी लोग तो इन ढोंगी बाबाओं और तांत्रिकों की गिरफ्त में नहीं हैं ! फिर ऐसा क्यों ? पुलिस के सामने क्या मजबूरी है ? एक आम आदमी को परेशान करने के लिए पुलिस के पास सौ रास्ते हैं लेकिन इन धूर्त शैतानों को सबक सिखाने में उसकी कोई रूचि नहीं है ... क्यों ?
संस्कार की बात आपने सौ फीसदी सही कही ........ इससे पीछा छुडाना बेहद मुश्किल है. यहाँ पर हम चाहे लाख हाँ जी.....हाँ जी कहें लेकिन हमारा सारा काम पाखण्ड के बगैर नहीं होता है. हर चीज में पंडे...पुरोहित अनिवार्य हैं,
आपका 'जाप' वाला किस्सा पढ़कर हंसी आ गयी .... जहाँ मैं रहता हूँ वहां तो आये दिन कभी अखंड रामायण..कभी भगवती जागरण..कभी भागवत ...रात भर नींद की ऐसी तैसी हो जाती है. इस तरह का आयोजन करने वालों के इतनी सी बात दिमाग में नहीं घुसती कि हो सकता है किसी की तबीयत खराब हो . . या किसी को सवेरे ट्रेन पकड़नी हो ... या किसी का इक्जाम चल रहा हो. अगर टोक दो तो बस बन गए हम मजहब के दुश्मन.
जडेजा के अलावा अभी अभी हरियाणा और दिल्ली से भी ठगों के पकडे जाने की खबर आयीं हैं जहाँ गरीब गाँव वाले नहीं ,पढे लिखे और सम्पन्न लोग ---तीन गुना नहीं १० गुना धन पाने के लालच में आ गए.[दिल्ली के चिट फंड वाला केस]..[खबर सुन कर ही उन सभी की बुद्धि पर हंसी आती है.]
जवाब देंहटाएं.आप का सवाल है दोषी कौन--
इन सभी ठगी के केसों में वह सभी बराबर के दोषी हैं--
१-जिन्होंने ठगी की योजना बनाई.
२-वे सभी जो इन की बैटन पर विश्वास कर गए ओर अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया.
३-जिन्होंने इन के प्रचार में सहयता की.अपने चेनलों पर इनकी विडियो दिखाई.इनके विज्ञापन प्रसारित किये.[क्या कोई कानून नहीं है इस तरह की विज्ञापनों को रोकने के लिए?]
४-पुलिस प्रशासन -जिन्होंने इस तरह की शिकायतों को दराज़ नहीं किया दर्ज किया तो एक्शन नहीं लिया.
५- वे सभी भी इस जुर्म के हिस्सेदार हैं जो उन क्षेत्रों का प्रशासन संभालते हैं ...आप के क्षेत्र में क्या हो रहा है..अगर आप को नहीं मालूम तो किस लिए कुर्सी संभाले हुए हैं?
६-एक दो टीम नहीं हजारों करोडों का घोटाला हुआ ओर कहीं किसी को खबर नहीं ..क्या यह संभव है??
बहुत बड़ा जाल है यह..किस किस को दोषी ठहराएँ...
---कानून सख्त करने की जररत है.
वैसे सच कहूँ यू .ऐ.ई में अन्धविश्वास फैलाने वाले और black magic/kalaa जादू जैसी बातें फैलाने वालों के लिए बहुत ही सख्त कानून हैं..यहाँ तक की इस तरह की सभी वेब साईट भी ब्लाक हैं.एक स्तर पर नियंत्रण है...
मगर फिर भी .....झाड़ फूंक...गरम सरियों से भूत भगाने का प्रक्रम!....शैतान को भगाने के लिए मुत्त्व्वा के पास ले जाना..फूंक मरवाना....यह सब ???क्या कहूँ?हर किसी को अपनी मानसिकता में बदलाव लाना होगा..
यह मैं कह रही हूँ मगर मैं भी ....नज़र लगने वाली बात को मानती हूँ..मेरा भी दुआओं में अटूट विश्वास है..क्या किया जाये?इंसान हैं !अनुभव असर छोड़ते हैं...
--seedhi baat-खुद को संयमित करे इंसान और जीवन में कहीं भी शोर्ट कट से बचे.
is tarah ke fraud badmason ko jail men daal dena chahiye.
जवाब देंहटाएंअलका आंटी इन धूर्त लोगों को जेल में डालना इतना आसान नहीं है ! इनकी पहुँच कद्दावर नेताओं.... मंत्रिओं तक तो होती ही है साथ ही पुलिस से मिली भगत भी रहती है !
जवाब देंहटाएंयह बात मैं अपने अनुभव से कहना चाहूँगा कि कोई भी पाठक अति उत्साह में ऐसे धूर्त .. पाखंडियों से स्वयं को मजबूत किये बिना टकराव का रास्ता कभी न चुनें ! क्योंकि अच्छे आदमी के साथ भले ही एक भी मित्र न हो लेकिन ऐसे लोगों के हमदर्दों की कमी नहीं होती है ! ऐसे अधिकतर लोगों का क्रिमिनल बैकग्राउंड होता है .... 8 - 10 मुस्टंडे भी पाले होते हैं ! तो भैया जरा बच के !
अगर मान लीजिये सरकार इन सबपर एक साथ कार्यवाही करती भी है तो क्या होगा ? धारा ४२० के अर्न्तगत क्या सजा होगी ? जल्दी ही छूट जायेंगे ! नाम और शहर बदलकर पुनः धंधा चालू ! अल्पना जी के सुझाव क्रम संख्या तीन और आखिरी (सख्त कानून) से मैं पूरी तरह सहमत हूँ !
जब तक शिक्षा पद्धति में बदलाव और जनचेतना के कार्यक्रम लागू नहीं होंगे हमें इस तरह की घटनाएं सुनाती देती रहेंगी !
(अलका तुम हर जगह क्यों पहुँच जाती हो ? यह पढ़े - लिखे लोगों की जगह है .... रिक्शा स्टैंड ... बस स्टैंड .. अंडरस्टैंड ??? )
गीता में कर्मण्ये वाधिकारस्ते......., कुरान में जगह जगह अमल पर जोर, बाकी धर्मग्रन्थों में भी कर्म की प्रधानता के बावजूद, रातों रात करोड़पति बनने का ख्वाब, ईश्वर की सत्ता में ठगों को भागीदार बनाना, यह जानते हुए भी कि हर व्यक्ति को उसके कर्मों के ही आधार पर स्वर्ग या नर्क पाना है, किसी को परम पुनीत कर, उससे (ईश्वर से नहीं ) यह अपेक्षा करना कि उसका जीवन और परमार्थ वही संवारेगा, फिर रोना, हाय तौबा मचाना क्यों? जब ऐसे लोगों जय जैकार की जा रही थी, उनके कदमों पर लोटा जा रहा था, तब क्या शिक्षा, ज्ञान,जागरूकता आदि सब गिरवी रख दिए गये थे. बिना परिश्रम फल, वह भी स्वर्ण फल की प्राप्ति की आशा, अब दर्द उठा तो पुलिस, मंत्री, सरकार, शासन, अधिकार की याद सताने लगी. होना तो यह चाहिए कि अंधविश्वासों को बढावा देने, ठगों को भगवान रूप में प्रचारित करने के लिए इनके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए.
जवाब देंहटाएंmera manna hai ki andhvishwasi babaon ko rokne ka sabse betar tarika hai- sabse pahle to media ko rokna hoga jo in pakhandiyo ko chanel par lati hai . kya unki koi jimmedari nahi hai ki in babao ki pahle jaanch padtal karen fir program prakashit karen. is mamle me media hi sabse badi doshi hai....
जवाब देंहटाएंविचारणीय प्रश्न।
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